सावन के ये घिरते बादल,
बिजली को चमकाते शोला को है और भडकाते,
पत्थर को पानी बनाते बादल,
मधु स्वपनोँ पर छा जाते बादल,
सावन के ये घिरते बादल ।
प्रकति के ये राज दुलारे,
गोपियो के ये माधव प्यारे,
मोर संग घनघोर बन नाचे बादल,
ये आवारा पागल बादल,
सावन के ये घिरते बादल ।
उमडते घुमडते आगे बढते,
काश ! यही पर फुटकर गिर पडते,
सागर सा उफनते बादल,
सबका मन मोह ले जाते बादल,
उफ! सावन के ये घिरते बादल ।
कहता है "भोजपुरिया भईया" अब और न तरसाओ बादल,
दिल मे न शोला भडकाओ बादल,
धरती पुकार रही-
अब हमारी भी प्यास बुझाओ बादल,
आशाओ को न आँसु बनाओ बादल,
घनघोर बन बरस जाओ भी बादल,
हाय! सावन के ये घिरते बादल ।
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