Monday, July 6, 2009

सावन के घिरते बादल

कितने मनोहर कितने प्यारे,
सावन के ये घिरते बादल,
बिजली को चमकाते शोला को है और भडकाते,
पत्थर को पानी बनाते बादल,
मधु स्वपनोँ पर छा जाते बादल,
सावन के ये घिरते बादल ।

प्रकति के ये राज दुलारे,
गोपियो के ये माधव प्यारे,
मोर संग घनघोर बन नाचे बादल,
ये आवारा पागल बादल,
सावन के ये घिरते बादल ।

उमडते घुमडते आगे बढते,
काश ! यही पर फुटकर गिर पडते,
सागर सा उफनते बादल,
सबका मन मोह ले जाते बादल,
उफ! सावन के ये घिरते बादल ।

कहता है "भोजपुरिया भईया" अब और न तरसाओ बादल,
दिल मे न शोला भडकाओ बादल,
धरती पुकार रही-
अब हमारी भी प्यास बुझाओ बादल,
आशाओ को न आँसु बनाओ बादल,
घनघोर बन बरस जाओ भी बादल,
हाय! सावन के ये घिरते बादल ।

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